आह्वान गीत



         साभार:- 

       आह्वान गीत

 (राम अवतार रस्तोगी 'शैल')


आज तक तो मैं प्रणय के गीत ही गाता रहा हूं...
कौन क्यों कितना मुझे प्रिय बस सुनाता भर रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

आज मेरे दीन स्वर का दैन्य मुझको खल रहा है...
वीरता के गान में अब मैं उसे बदला रहा हूं...
आज मेरी हर दिशा से स्वर यही उठ पा रहा है...
तोड़ वीणा लो उठा कवि, भैरवी मैं गा रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

आज मेरे देश का हर नागरिक यह कह रहा है...
मैं धरा पर स्वर्ग लख कर, मौन ही रहता रहा हूं...
पर शान्ति का आह्वान मुझको व्यर्थ अब लगने लगा है...
युद्ध का उपहार अभिनव, जग को दिलाने आ रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

जा रहा छूने गगन को वह हिमालय कह रहा है...
बर्फ से दबता हुआ भी, आग में जलता रहा हूं...
पिट गया हूं दोस्ती में, अब मगर ऐसा नहीं है...
दोस्त-दुश्मन की मैं अब पहचान करता जा रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

न्याय के साथी सदा के, अन्याय हमको खल रहा है...
इंच भर भूमि किसी की, दाब लें, इच्छा नहीं है...
पर तनिक भी आ गई अपनी अगर दुश्मन तले तो...
स्वत्व के हित लड़ मरेंगे, मैं तुम्हें जतला रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

जा चुका विश्वास वह तो, लौटकर आना नहीं है...
पर क्षम्य तुम, बस! लौट जाओ, मैं तुम्हें चेता रहा हूं...
सिंह सोतों को जगाया, चीन तुमने गलतियों से...
भूल गए वे रक्त-प्रिय हैं, मैं तुम्हें बतला रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

याद होगा यदि नहीं, इतिहास कब से कह रहा है...
आक्रमण कर चीन का सम्राट अब तक रो रहा है...
साम्यवादी चीनियों लेकर सबक तुम उस सबक से...
लौट जाओ चीन को अब, मैं तुम्हें समझा रहा हूं...

पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...

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