न्याय पालिका संग राजनीती
न्याय पालिका संग राजनीती
आज हमारे समाज में न्याय पालिका की शाख आये दिन गिरती जा रही है जीसका मुख्य कारण निर्वाचित प्रतिनिधियों का सत्ता में रहते हुवे राजनितिक लाभ हेतु न्याय पालिका का उपयोग करना है जो अत्यंत चिंता जनक है तथा न्यायालय की गरिमा को विश्वास को दीन पर दिन कम करने जैसा कृत्य किया जा रहा है वर्तमान में जिस तरह के धटना क्रम सामने आये है वे यह सिद्ध कर देने के लिए काफी है की न्याय पालिका को हमारे नुमाइंदे अपने हिसाब से चलना चाहते है यदि ऐसा नहीं है तो
सर्वोच्च न्यालय के न्यायधीश के ऊपर चारित्रिक दोष जैसा आरोप नहीं लगता
राम मंदिर का मामला अभी तक लंबित नहीं होता
आर्थिक अपराधी विश्व भर्मण नहीं कर रहे होते
अकेले सर्वोच्च न्यायलय में ५८०२९ मुकदमे (१फरवरी २०१९ तक) लंबित नहीं रहते
वर्तमान व् पूर्व माननीय विधायक व् माननीय सांसद महोदय गण के ऊपर लंबित मुकदमो की संख्या मात्र ४११२ है (यह आकड़ा माननीय सर्वोच्च न्यायालय का है ) नहीं रहती
हमारे विशाल जन समुदाय वाले देस में प्रतेक दस लाख व्यक्ति पर उन्नीस जज की संख्या है (पि टी आई के अनुसार )
क्याभारत में न्यायमिलना सम्भब प्रतीत होता है फिर भी अगर मिल गया गया तो मिलने वालो का भाग्य
इसके आलावा हाल के दिनों में न्यायलय के आदेशों को जिस तरह से राजनैतिक दवाओं में बदला गया है न्याय पालिका की छवि को गिराने का काम किया गया है
जातिवादी ताकतों को बढ़ावा दिए जाने वाला कृत्य किया क्या है
भिड़वड़ी ताकतों को बढ़ावा दिया गया है
वो दिन दूर नहीं जब समुदय का भीड़ व् हिंसा वादी ताकतों का बोलवाला होगा और सरकार राजनैतिक दबाव में मौन बनी तमाशा देख रही होगी
(उपरोक्त विचार मेरे अपने है किसी को ठेश पहुंचने के उद्देश्य से नहीं लिखे गए है सत्यता के करीब है विचारणीय है )