साभार:- आह्वान गीत (राम अवतार रस्तोगी 'शैल') आज तक तो मैं प्रणय के गीत ही गाता रहा हूं... कौन क्यों कितना मुझे प्रिय बस सुनाता भर रहा हूं... पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं... गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं... आज मेरे दीन स्वर का दैन्य मुझको खल रहा है... वीरता के गान में अब मैं उसे बदला रहा हूं... आज मेरी हर दिशा से स्वर यही उठ पा रहा है... तोड़ वीणा लो उठा कवि, भैरवी मैं गा रहा हूं... पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं... गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं... आज मेरे देश का हर नागरिक यह कह रहा है... मैं धरा पर स्वर्ग लख कर, मौन ही रहता रहा हूं... पर शान्ति का आह्वान मुझको व्यर्थ अब लगने लगा है... युद्ध का उपहार अभिनव, जग को दिलाने आ रहा हूं... पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं... गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं... जा रहा छूने गगन को वह हिमालय कह रहा है... बर्फ से दबता हुआ भी, आग में जलता रहा हूं... पिट गया हूं दोस्ती में, अब मगर ऐसा नह...